शनिवार, 30 जून 2007

नागफनी के फूल

विजय की शादी थी। हम शहडोल स्टेशन से उसके गांव एन्ताझार की ओर बढ चले थे। घुमावदार सड़क गांव कि पगडण्डी की कल्पना से काफी बेहतर थी। एक मोटर साईकिल पर सवार हम तीन लोग बड़ी तेजी से बढ़े चले जा रहे थे। मैं भी चुंकि बहुत दिनों से गांव नही गया था तो यह यात्रा काफी सुकून दे रही थी। मेरी मोहतरमा प्रसन्न थी कि चलो किसी बहाने सही पति के साथ घूमने तो निकले। अब गांव मे जाकर बता तो सकेंगे कि 'घूमे' हैं। अलबत्ता मैं पिछले डेढ़ महिने की 'क़मर तोड़ देने जैसे अखबारी काम से आजाद' होकर घूमने निकला था। सो यह यात्रा मेरे लिए भी उतनी ही आनंददायक थी। फर्क यह था कि मैं अपने दोस्त कि शादी में आया था।
रास्ता लंबा न सही लेकिन उसका आभास तो कराती ही थी। खैर; रास्ते में एक नागफनी के पौधे की खूबसूरती देख मैंने लाला भाई सा कहा नागफनी यहाँ भी होता है क्या? लाला भाई विजय के बडे भाई के साले हैं उन्हें मौका मिल गया था कि जीजा के छोटे भाई के मित्र को 'रपेटो'। पर मैं तुरत संभल गया और कह उठा 'अरे ये तो पूरा झारखंड है।' लाला भाई शायद मन मसोस कर रह गए होंगे। नागफनी के उस फूल कि खूबसूरती बस इतनी नही थी कि उसकी प्रशंसा मे यहाँ आंय-बांय लिखा जाय। वह तो पूरे वातावरण को सुगन्धित और आलोकित करने की लालसा लिए वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रह था। मैंने घर पहुँचने के बाद रूपेश भाई से कहा ' नागफनी के फूल देख्लौंह कि?' वो चुंकि मेरे बाद आये थे। नागफनी का 'गंध' ले चुके थे। इसलिये सगर्वित होकर बोले ' अपनों दिस होइत छैक।'