शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

जहाँ तक पहुंचती है नज़र....

शीर्षक को भ्रमात्मक बनाने का आशय पिछले पोस्ट को ही आगे बढ़ाने है. हालांकि पहली बार अपने ब्लोग को किसी अग्रिगेटर से जोड़ने की कोशिश मैंनें की ताकि मेरा ब्लोग किसी अग्रिगेटर से जुड़ जाये. ब्लोग्वाणी पर लिखा था की 'लिंक डालो, तेरा ब्लोग दिखेगा.' पर मुझे दिखा नहीं. तो मित्रो, (सचिन तुम ज्यादा !) यदि आपलोग मुझे अपने ब्लोग को ब्लोग्वाणी पर डालने का तरीका विस्तार से समझा दें तो कृपा होगी.........

खैर, वापस लौटते हैं विकास पर। चित्रकूट कार्यशाला मुख्यतः दो भागों में बंटी थी. पहला विकास की वतॆमान दिशा और स्थिति पर विचार जो अमूमन ऐसी किसी कायॆशाला के पहले सत्र में खास हुआ करती है. दूसरा आगे की कायॆयोजनाओं पर विमशॆ ताकि फलप्रद दिखे ये कवायद. मुझे लगता है कि आम कायॆशालाओं की तरह यहां भी पहला सत्र काफी सारे विद्वानों के काफी सारे तथ्य से भरा-पूरा रहा. इंदौर के सप्रेस वाले चिन्मय जी, झारखंड से आए अश्विनी जी, वहीं के निराला, भोपाल से पुष्पेंद्र पाल जी, आयोजकों में से एक सचिन जी जैसे तथ्यान्वेषियों ने अपने पिटारे जी भरकर खोले. इससे इस कायॆशाला का सेंसेक्स हजारी-दर-हजारी ही हुआ. यह सही भी है क्योंकि जब तक विकास को आंकड़ों के तराजू पर तौलकर देखनेवाली सरकार को उन्हीं के मुंह पर मारे जाने वाले आंकड़े न मारे जाएं, उन्हें 'लगता' ही नहीं....
सबसे जो सही बात इस कायॆशाला की रही वह था इसका 'इंटरएक्टिव' होना. इससे आम कायॆशालाओं या सेमिनारों में बैठकर झक मारनेवाले या कह लें सोनेवालों को घोर निराशा हुई होगी. पहली बैठक का ही बात-चीत से शुरू होना और अंत तक इसी स्वरूप में चलना अच्छी बात रही. हालांकि कम अवधि का होने से वक्ताओं को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, लेकिन यह 'टालरेबल' था.
कुछ बातें उस दिन अधूरी ही थीं कि किसी नामुराद ने पोस्ट पर क्लिक कर दिया. इसके लिए सौरी. आगे देखते हैं...

जो मुख्य बातें इस कायॆशाला में सामने आईं उनमें
१.विकास के लिए व्यक्तिगत तौर पर सहभागिता हर स्तर पर होना चाहिए
२. जिससे जितना जहां बन पड़ रहा है, उसमें कमी नहीं की जानी चाहिए
३. विकास संबंधी सूचनाओं से अपने-आपको अपडेट रखना भी जरूरी है

४. मीडिया में विकास संबंधी गतिविधियों का नियमित अवलोकन भी जरूरी ....
इसके अलावा कई और भी बिंदु थे जिनकी ओर उक्त कायॆशाला में आए लोगों का ध्यान गया होगा। दरअसल इस पोस्ट का शीषॆक जहां तक पहुंचती है नजर...रखने का कारण भी यही था. विकास संबंधी मुद्दों की आज देश में यही स्थिति है. सुदूर बस्तर से लेकर कालाहांडी या उत्तर-पूवॆ की स्थिति या फिर महाराष्ट्र और आंध्र में किसानों की खुदकुशी, कहीं भी तो हम निश्चिंत नहीं हैं. फिर एक पहल भर की तो जरूरत है हमें विकास के लिए आगे बढ़ने की.....कहिए, खूब भाषण हो गया न.... मैंने सोचा विकास-विकास रटते-रटते आपको गुदगुदी लगा दूं....

बाकी कल...