सोमवार, 1 सितंबर 2008

कौन लिखेगा परती परिकथा


फोटो साभारः दैनिक जागरण
बाढ़ और बिहार का सदियों पुराना नाता है. साल दर साल यहां के उत्तरी इलाके की जनता बाढ़ की विभीषिका से त्रस्त होती आ रही है. बाढ़ इस साल भी आई. लेकिन वहां जहां कई सालों से नहीं आई थी. याद करें यह वही जमीन है जहां पर बैठकर रेणु ने परती परिकथा लिखी. रेणु, अरे वही अपने तीसरी कसम वाले. याद आया. मगर कुछ सालों से रेणु की परती सोना देने लगी थी. लोग खुश थे, अमन-चैन से रह रहे थे. मगर अबकी कोसी मैया को बहुत सालों बाद इस परती की याद आई. सो रुपेश भाई ने जब कहा कि अब कौन लिखेगा परती परिकथा, तो एकबारगी रेणु, कोसी और बाढ़ की याद आ गई.
इस बार की बाढ़ थोड़ी अलग है. इसलिए विपदा भी, राहत कार्य भी और निश्चित रूप से सरकार तो अलग है ही. मीडिया भी अलग नजर से देख रहा था. वह तो भला हो एनडीटीवी का. उसकी टीम पहले चली गई. भेड़िया-धसान शैली की हिमायती चैनल-संस्कृति के वाहक बाकी चैनलों को तो पूरे चार दिनों के बाद पता चला कि अरे भाई आंदोलन करने वाले, चारा घोटालावाले, राजनीतिक चर्चा करते रहने वाले बिहार में बाढ़ आ गई. फिर क्या था, पिलना था ही, पिल पड़े. एक से एक हेडिंग, पैकेज, विजुअल्स लेकर पेश हो गए सबके सब. कोई कैमरे के साथ नाव पर खड़ा होकर बोल रहा है तो कोई भूख से 'बिलबिलाते' लोगों के बीच जाकर. अलबत्ता एनडीटीवी अव्वल रहा सो उसने बागडोर थामे रखी. हां इस बीच अखबारों को जरूर बाढ़ की खबरनवीसी की याद थी, सो एकाध को छोड़ बाकी बाढ़ के कवरेज में आगे रहे.
अब इस बीच परती परिकथा की याद किसे आए. रूपेश भाई को आई तो आई. हां बिहार के साहित्यप्रेमियों को जरूर आई होगी. आखिर उन्हें दर्द नहीं होगा तो और किसे होगा. तो भाई लोगों हमें इंतजार है पहले किसे याद आती है परती...... की.