दशकों पहले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता विषयक निबंध लिखा. आचार्य को उर्मिला याद आई उनके पति और दो देवर नहीं. शायद आपने भी कभी लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्मदिन नहीं मनाया होगा. आखिर मनाए भी क्यों वे कौन से राम हैं...जो वन जाकर रावण सहित कई राक्षसों को मार आए, शूर्पनखा की नाक कटवा ली, समुन्दर अच्छा-खासा सपाट बह रहा था, रामसेतु बनवाकर भविष्य के लिए विवाद पैदा कर दिया, और तो और सीता की अग्निपरीक्षा लेकर नारी जाति को सदा के लिए संदेह के घेरे में डाल दिया. खैर, अब राम को छोड़ कोई उनके भाइयों का जन्मदिन न मनाए तो इसमें राम का क्या दोष. मर्यादा की बात थोड़े ही है.
रामनवमी की आहट पाकर मेरे मन में ये विचार पनपा सो लिख रहा हूं. लिखने की बात भी है और आज से इसे मुद्दा मैं मानने लगा हूं. दरअसल, क्रौंच पक्षियों का आर्तनाद सुनकर रामायण लिखने वाले वाल्मीकि के नाम पर तो कोई जाति ही सही उनकी जयंती मना लेती है. राम सिर्फ राजपूतों के नहीं रह पाए वरना देखते कि क्या शान से राम की भी जयंती मनाई जाती. लेकिन मुद्दा ये है कि मेरी जानकारी के अनुसार वशिष्ठ मुनि ने राजा दशरथ की तीनों रानियों को एक ही पेड़ का एक ही प्रकृति का फल दिया था खाने को. (जिनको मालूम हो कि पुत्रेष्टि यग्य हुआ था उनसे भी मुझे कोई आपत्ति नहीं). तीनों रानियों ने एक ही दिन बच्चे जने होंगे. हो सकता है कि अलग-अलग समय में ये पुनीत कार्य हुआ हो, मुझे पता नहीं. तब ऐसी क्या आफत आ गई कि सिर्फ राम का ही जन्मदिवस प्रसिद्ध रह सका. बाकी के भाई भी लगता है हर साल हैप्पी बर्थ-डे का सॉंग नहीं गाते होंगे इसलिए पिछड़ गए.
तो विग्यजनों मेरा आपसे अनुरोध है कि यदि किसी को राम के इन बेचारे-से भाइयों का बर्थ-डे इस धरा पर कहीं भी मनाए जाने की कोई जानकारी हो तो मुझे दें. यदि पहले से कोई जन्मदिवस हो तब तो ये जानकारी मुझ तक पहुंचाना और भी जरूरी है. तब तक के लिए राम को उनके .........वीं वर्षगांठ की शुभकामनाएं.
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