यूं तो जीनियस कई हो सकते हैं मगर उनमें विरले एकाध ही दिखते हैं। हाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक जीनियस 'राजेश' हो गया। कहा गया कि वो किसी अमेरिकी वैज्ञानिक 'वालेस रिगार्ट' का 'ताजा संस्करण' है। तथ्य भी ऐसे थे कि एकबारगी तो कोई भी इसे अप्रत्याशित घटना के बतौर लेने से हिचकिचा नहीं सकता था। कहा गया कि संभवतः वो 'मार्स और वेलोसिटी' के आधार पर कुछ अभिनव प्रयोग करने वाला है। अव्वल उसके द्वारा पिछले दो-तीन महीनों में कुछ किताबें भी लिखी गयी बतायी गयीं। अब सारा खेल जब ख़बरों का हो तो रिपोर्टरों के कान तो खडे होने ही थे। आजकल तो चैनलों की मारामारी है तो चैनल वालों ने भी उस जीनियस कि ओर अपने कैमरे घुमा डाले। जब चैनल पर बात फैली तो सारा देश 'प्रिन्स' के बाद जैसे फिर से जग गया। राजेश का अमेरिकन शैली में इंग्लिश बोलना, उसकी अदाएँ, हाव-भाव सभी चैनलों की कसौटी पर परखे जाने लगे। एक चैनल ने कई घंटों की मशक्कत के बाद अंततः ये साबित कर दिया कि हो न हो अमेरिकन वैज्ञानिक कि 'आत्मा' राजेश में घुस ही गयी है। दूसरों को इतने पर ही चैन कहॉ आने वाला था। ख़ुर्द-बीन से खोज-बीन शुरू हो गयी। आश्चर्यजनक रूप से दूसरे ही दिन खबर आ गयी कि राजेश अमेरिकन वैज्ञानिक नहीं महज उसका ढोंग रचने वाला फ़रेबी है। उसे उसके कुछ शिक्षकों ने मिलकर इस लायक बनाया है कि वह यह ढोंग 'खुलेआम' कर सका है। खबर का जो हश्र होने वाला था वह हो गया। खबर फैल भी गयी थी और लोगों ने उसपर अपनी रोटी सेकने कि फोर्मली शुरुआत भी कर ली थी। दौर-ए-सफ़ाई शुरू ये होना था कि राजेश को जीनियस ही रखा एक, अख़बार ढोंगी करार दिए जाने को झुठलाया जाय। खबर को सवॆप्रथम छापने वाले अखबार ने खबर दी कि चैनल वाले राजेश के साथ अन्याय कर रहे हैं। कुछ चैनलों को ये पच नहीं रहा है कि कोई दूसरा चैनल उनसे बाजी मार जाए। इसलिए राजेश को तीन दिनों से बिठाकर उससे सवाल-जवाब कर रहे हैं। खबर छपी, अगले दो दिनों तक खूब हंगामा रहा, लेकिन बात फिर वहीं की होकर रह गई। यानि खबरें जहां से आती हैं, जिसके लिए छपती हैं, जिसके हित में होती हैं, उसे बीच मंझधार छोड़ माझी चला जाता है। इन सारी बातों के इतर राजेश जिस अमेरिकी वैज्ञानिक का क्लोन बन रहा था, उसका नाम-पता दो-तीन लोगों को इंटरनेट पर ढूंढ़े नहीं मिला। इससे ये अफवाह भी फैली कि शायद खबर देने वाला सही था, खबर नहीं। बहरहाल, राजेश का प्रकरण उसके तीन खैर-ख्वाहों पर अपहरण के मुकदमे के साथ थम सा गया। अब बेसब्री इस बात की लगी है कि कब राजेश फिर से अमेरिकी वैज्ञानिक बनेगा।
बुधवार, 18 जुलाई 2007
जीनियसों का जिक्र
यूं तो जीनियस कई हो सकते हैं मगर उनमें विरले एकाध ही दिखते हैं। हाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक जीनियस 'राजेश' हो गया। कहा गया कि वो किसी अमेरिकी वैज्ञानिक 'वालेस रिगार्ट' का 'ताजा संस्करण' है। तथ्य भी ऐसे थे कि एकबारगी तो कोई भी इसे अप्रत्याशित घटना के बतौर लेने से हिचकिचा नहीं सकता था। कहा गया कि संभवतः वो 'मार्स और वेलोसिटी' के आधार पर कुछ अभिनव प्रयोग करने वाला है। अव्वल उसके द्वारा पिछले दो-तीन महीनों में कुछ किताबें भी लिखी गयी बतायी गयीं। अब सारा खेल जब ख़बरों का हो तो रिपोर्टरों के कान तो खडे होने ही थे। आजकल तो चैनलों की मारामारी है तो चैनल वालों ने भी उस जीनियस कि ओर अपने कैमरे घुमा डाले। जब चैनल पर बात फैली तो सारा देश 'प्रिन्स' के बाद जैसे फिर से जग गया। राजेश का अमेरिकन शैली में इंग्लिश बोलना, उसकी अदाएँ, हाव-भाव सभी चैनलों की कसौटी पर परखे जाने लगे। एक चैनल ने कई घंटों की मशक्कत के बाद अंततः ये साबित कर दिया कि हो न हो अमेरिकन वैज्ञानिक कि 'आत्मा' राजेश में घुस ही गयी है। दूसरों को इतने पर ही चैन कहॉ आने वाला था। ख़ुर्द-बीन से खोज-बीन शुरू हो गयी। आश्चर्यजनक रूप से दूसरे ही दिन खबर आ गयी कि राजेश अमेरिकन वैज्ञानिक नहीं महज उसका ढोंग रचने वाला फ़रेबी है। उसे उसके कुछ शिक्षकों ने मिलकर इस लायक बनाया है कि वह यह ढोंग 'खुलेआम' कर सका है। खबर का जो हश्र होने वाला था वह हो गया। खबर फैल भी गयी थी और लोगों ने उसपर अपनी रोटी सेकने कि फोर्मली शुरुआत भी कर ली थी। दौर-ए-सफ़ाई शुरू ये होना था कि राजेश को जीनियस ही रखा एक, अख़बार ढोंगी करार दिए जाने को झुठलाया जाय। खबर को सवॆप्रथम छापने वाले अखबार ने खबर दी कि चैनल वाले राजेश के साथ अन्याय कर रहे हैं। कुछ चैनलों को ये पच नहीं रहा है कि कोई दूसरा चैनल उनसे बाजी मार जाए। इसलिए राजेश को तीन दिनों से बिठाकर उससे सवाल-जवाब कर रहे हैं। खबर छपी, अगले दो दिनों तक खूब हंगामा रहा, लेकिन बात फिर वहीं की होकर रह गई। यानि खबरें जहां से आती हैं, जिसके लिए छपती हैं, जिसके हित में होती हैं, उसे बीच मंझधार छोड़ माझी चला जाता है। इन सारी बातों के इतर राजेश जिस अमेरिकी वैज्ञानिक का क्लोन बन रहा था, उसका नाम-पता दो-तीन लोगों को इंटरनेट पर ढूंढ़े नहीं मिला। इससे ये अफवाह भी फैली कि शायद खबर देने वाला सही था, खबर नहीं। बहरहाल, राजेश का प्रकरण उसके तीन खैर-ख्वाहों पर अपहरण के मुकदमे के साथ थम सा गया। अब बेसब्री इस बात की लगी है कि कब राजेश फिर से अमेरिकी वैज्ञानिक बनेगा।
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