सोमवार, 7 अप्रैल 2008
हलवा पराठा खाया है आपने...
पराठे तो खाए होंगे आपने. साथ में भले ही हलवा न खाया हो. खैर आजकल हलवा-पराठा की चासनी में डूबा हुआ है. भई, मानना पड़ेगा कि कुछ तो खासियत होती है इन परंपरावादी शहरों में.
यूं तो मेरठ में खाने के नाम पर पिंकी के छोले, रामचंद्र सहाय के तिल के आइटम्स और कई चीजें हैं जिनकी खासियत उन्हें खाने वाला अर्से तक याद रखता है. लेकिन कुछ खास मौकों की चीजों में हलवा-पराठा है. दरअसल आजकल नौचंदी मेला चल रहा है. मेले ने अभी तो रंग नहीं पकड़ा है लेकिन कुछ स्टॉल सज गए हैं. इन्हीं में से हलवा-पराठे के होटल भी हैं.
भारी-भरकम से पराठे और घी में डूबा हलवा लोगों की जबान से उतरकर जाने कब का दिलों में बस चुका है. इसीलिए भले ही शुद्ध देशी घी के न सही, बाजारू घी के ही हलवे का मजा उठाने में भी लोग पीछे नहीं रहते. हमारे बिहारी भाइयों को पता होगा कि बेतिया के मेले में बड़े-बड़े खाजा मिलते हैं. बांस के सूप जैसे आकार का खाजा, जो एक खा ले वह माई का लाल. कुछ ऐसा ही है नौचंदी का पराठा.
अभी एक महीना चलेगा ये मेला. इस मेले को सांप्रदायिक सौहार्द्र, मेरठ की पहचान और न जाने क्या-क्या विशेषण दिए गए हैं. यहां आने पर इसका पता भी चल जाता है. एक तरफ कब्र और दरगाह और दूसरी ओर चंडी देवी का मंदिर. मेरठ जैसे शहर में भी हमारे पुराने जमाने के लोग पता नहीं कैसे-कैसे सांस्कृतिक उपादान खोज लेते थे, आश्चर्य है. खैर, मैं ये पोस्ट इसलिए डाल रहा हूं कि मेरठ से बाहर के लोगों को नौचंदी मेले का पता चल जाए और वे हलवा-पराठे के बहाने ही सही, मेले में आएंगे.
फोटो - दैनिक जागरण के सौजन्य से.
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