बुधवार, 14 जुलाई 2010

ये है रांची


झारखंड आए अभी एक हफ्ते ही हुए और अपन ने चार दिनों की बंदी देख ली है. लोग कह रहे हैं अभी तो कुछ नहीं जब फलाना पार्टी बंद कराएगी न, तब देखिएगा..... पूरा रांचिए सुन्न हो जाता है. अब हम और हमारे साथ आए कुछ और लोग बेसब्री से उस बंदी का ही इंतजार कर रहे हैं. खैर जाने दीजिए इन चार दिनों की बंदी को, अपन झारखंड की राजधानी के मजे उड़ा रहे हैं. दफ्तर काफी ऊंचाई पर है, डेढ़ सौ सीढ़ियां चढ़नी-उतरनी पड़ती हैं, फिर भी पान-गुटखा-सिगरेट आदि के शौकीन रोज अपने बदन को कसरती बना रहे हैं. अब हमारे लिए तो कोई अलग से लिफ्ट बना नहीं देगा, सो हमें भी भाई लोगों का साथ देना ही पड़ता है.
रांची राजधानी बनने की किशोरावस्था में प्रवेश कर रही है. ऐसी अवस्था में मां-बाप से बच्चे नहीं संभलते, तो यहां के लोग राजधानी को कैसे संभालेंगे. इसलिए शहर की हर गली, नुक्कड़, कॉलोनी आदि को लोग फटकारते रहते हैं. सरेराह गंदगी देखते हुए भी सोचते हैं, बच्चा है रांची, उठाना सीख जाएगा. आड़े-तिरछे वाहन चलाकर सोचते हैं आया (ट्रैफिक पुलिस) कहां गई. मजे की बात ये है कि यहां बनने वाली हर सरकार चड्डी पहनना ( सरकार चलाना) सीखती ही है, कि उसे शू....शू.... आ जाता है. चड्डी गीली हो जाती है और रांची नंगी. अब भला ऐसे में रांची कैसे संभले.
इतनी ही बातों से रांची की पूरी जानकारी तो किसी को हो नहीं जाएगी, सो जब तक अपन इसका और भूगोल-नागरिक और इतिहास खंगालते हैं, आप इतने से ही काम चलाइए। हम आते हैं तो और जानकारी देंगे। अभी सिर्फ फर्जी फिकेशन ही करना पड़ेगा. अब रांची इतनी भी छोटी नहीं रह गई है कि आप किसी को बेवकूफ बना दें. आखिर महेंद्र सिंह धौनी का शहर है भई.... (भगवान बिरसा मुंडा सिर्फ झारखण्ड के होकर रह गए हैं) टीवी वाले भले कह लें कि छोटे शहर का छोरा टीम इंडिया का कप्तान बन गया..... लेकिन हम रांची में रहकर इसे छोटा शहर थोड़े ही न कहेंगे... सो अगले कुछ दिनों के लिए.... जोहार.... जय झारखंड