आजकल मंदी चल रही है. भारत और पाकिस्तान युद्ध जैसी बातें कर रहे हैं. अमेरिका अपने नए राष्ट्रपति की प्रतीक्षा कर रहा है. पता नहीं बीच में इजरायल पर उसके पड़ोसी फलस्तीन के आतंकी संगठन हमास ने हमला कर दिया. अब इजरायल भारत तो है नहीं कि पाकिस्तान को बार-बार, और बार, धमकाएगा कि देख ले बेटा, अब नहीं माने तो मारेंगे, हां..., उसने हमास पर हमला बोल दिया. लगे लोग मरने, और दुनिया शोर करने. अमेरिका बोला, अभी मंदी है पहले जरा मैं अपना घर ठीक कर लूं तब तक हमास आतंकी संगठन है. मुस्लिम देशों ने कहा, अमेरिका की बेटी की बदचलनी का सबको पता है, अब वह घर छोड़कर भाग रही है, उसे रोको. पहले से ही पड़ोसी से परेशान भारत भी पाकिस्तान को धमकाने वाले अंदाज में दुनिया के सुर में सुर मिला के कहने लगा, हां हमला ठीक बात नहीं है. मगर इजरायल तो इजरायल ठहरा. उसे कहां किसकी फिक्र. मंदी भी उसके इरादों को डगमगा नहीं पाई. उसने हमला चालू रखा.
मगर मंदी उसे तो बड़े-बड़े देशों, बड़े-बड़े लोगों के साथ लगने की बीमारी है, वह अपने काम में लगी रही. अमेरिकी बैंक डूबते रहे, यूरोप के सपने सीलते रहे, एशिया के कुछ हिस्से भी चूंकि इससे महफूज नहीं रह पाए थे, सो उन्होंने भी मरहम-पट्टी चालू कर दी. इन सबके बीच भारत कहता रहा कि हम मंदी से ज्यादा प्रभावित नहीं हैं, तो यहां के लोगों को भी यही लगा कि मंदी हमें क्या मारेगी. हालांकि इस मंदी का एक ट्रेलर जरूर लोगों ने कुछ माह पहले जेट एयरवेज के कर्मचारियों की छंटनी के रूप में देखा था, लेकिन उससे क्या. यहां जब भगत सिंह को पड़ोसी के घर में पैदा होने की सलाह दी जाती है, तो भला ये क्यों माना जाएगा कि मंदी हमारी कंपनी में भी आएगी. लेकिन मंदी तो मंदी ठहरी. भारत सरकार की कही बातों से भले न आई मगर यहां के कई कंपनी उसे ले आए. तब जाकर लोगों को लगा कि जिस तरह महंगाई बिना कहे आ जाती है उसी तरह मंदी भी बिना कहे आई. बेचारे लोग, मौजूदा गृहमंत्री और एक्स-वित्तमंत्री से आस लगाए बैठे थे कि वे कुछ कर लेंगे. पर एक्स-वित्तमंत्री कौन सी अमेरिकी कंपनी को कब रोक पाए थे कि मंदी को रोकते, सो मंदी दबे पांव आ ही गई.
अब भइया, जब मंदी आ ही गई तो स्वागत करो. क्योंकि हमारा देश भारत है, यहां मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है. जिस दिन नौकरी छूटे एक्स-वित्तमंत्री से कहना कि वह तुम्हारे गृह मंत्रालय को सुधार दें.......
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
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