शुक्रवार, 6 मार्च 2009

जय हो को तो छोड़ देते


बहुत से लोग राजनीति को गंदा कहते हैं. होगी शायद... पर मैं व्यक्तिगत रूप से सहमत नहीं। हालांकि अभी मैं इस बात पर बहस करने नहीं आया हूं। अभी तो जय हो। कांग्रेस पार्टी ने इस आठ आस्कर पुरस्कार विजेता फिल्म के इस प्रसिद्ध गाने का कापीराइट खरीद लिया है। अब हो सकता है कि राहुल गांधी अमेठी में आजा-आजा जिंदे शामियाने के तले... गाते नजर आएं या फिर उनकी बहन प्रियंका रायबरेली में अपनी अम्मा की सीट बचाने को लोगों को स्लमडागों को नीले-नीले आसमां के तले... इकट्ठी करती दिखें। बहरहाल नुकसान जय हो... का होगा. गुलजार का होगा। अपने रुहानी रचयिता एआर रहमान का या साउंड इंजीनियर रेसुल पूकुट्टी का। क्योंकि इन लोगों ने इस एक फिल्म के इस एक गाने को बनाया और प्रसिद्ध किया. और कांग्रेस ने इन लोगों का बना-बनाया माल एक झटके में गटक लिया. मानो, दूध सारा आपका, मलाई मेरा.
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास इस गाने के अलावा चुनाव में लगाने को नारे नहीं थे। कांग्रेस ने ही पहली बार देश से गरीबी हटाई थी, सांप्रदायिकता का सत्यानाश किया और न जाने क्या-क्या। लेकिन इस बार जय हो खरीदकर कांग्रेस ने अपनी 'क्रिएटीविटी' पर लगाम लगा दिया. ये भी हो सकता है कि अपने चुनाव प्रबंधकों को शायद मंदी का डर दिखाने के लिए गीदड़ भभकी दी हो, कि देखो अच्छे नारे बनाओ वरना तुम्हारा नाड़ा खोल देंगे।
मुझे रंज इस बात का नहीं है कि जय हो... बिक गया। खेद इस बात का है इस लोकसभा चुनाव के बहाने अब वह कितनी बार कितने लोगों के हाथ बिकेगी। भले ही भारतीय लोकतंत्र में चुनाव सबसे बड़ा महापर्व हो लेकिन इतना तो सब जानते हैं कि इस दौरान राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाएं कुछ हद तक तो घिनौनी होती ही हैं. यदि अपराधी किस्म के प्रत्याशी जय हो का नारा लगाएंगे तो पखवाड़ेभर पहले तक फिल्म (आधी ब्रिटिश-आधी भारतीय) को लेकर इतरा रहे हम लोगों का सिर शर्म से झुक नहीं जाएगा? क्या अपने कर्मों को लेकर जनता के बीच प्रदूषित छवि बना चुके लोकसभा उम्मीदवार इस विश्व प्रसिद्ध गाने को अपने ही जैसा प्रदूषित नहीं कर देंगे? डर इसी बात का है. कांग्रेस ने यही किया है. जन-सामान्य के गीत को अपने जनों के लिए सामान्य कर दिया है. इस गाने के गीतकार गुलजार का विरोध इसीलिए जायज है. हमें उनके विरोध का समर्थन करना चाहिए. क्योंकि यह कहीं न कहीं हमारी भारतीयता के हालिया बने प्रतीक की छवि को धूमिल करने का प्रयास सरीखा दिखता है.