
रास्ता लंबा न सही लेकिन उसका आभास तो कराती ही थी। खैर; रास्ते में एक नागफनी के पौधे की खूबसूरती देख मैंने लाला भाई सा कहा नागफनी यहाँ भी होता है क्या? लाला भाई विजय के बडे भाई के साले हैं उन्हें मौका मिल गया था कि जीजा के छोटे भाई के मित्र को 'रपेटो'। पर मैं तुरत संभल गया और कह उठा 'अरे ये तो पूरा झारखंड है।' लाला भाई शायद मन मसोस कर रह गए होंगे। नागफनी के उस फूल कि खूबसूरती बस इतनी नही थी कि उसकी प्रशंसा मे यहाँ आंय-बांय लिखा जाय। वह तो पूरे वातावरण को सुगन्धित और आलोकित करने की लालसा लिए वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रह था। मैंने घर पहुँचने के बाद रूपेश भाई से कहा ' नागफनी के फूल देख्लौंह कि?' वो चुंकि मेरे बाद आये थे। नागफनी का 'गंध' ले चुके थे। इसलिये सगर्वित होकर बोले ' अपनों दिस होइत छैक।'