सोमवार, 18 जून 2007

ब्लौग पर आकर

कमोबेश सभी को ब्लौगीयाते देख हम इस परेशानी मे रहे कि हम क्यों नहीं ब्लौग बना पा रहे हैं। कईयों को कहा कि भाई हमारा ब्लौग बनाने में हमारी मदद करो। लेकिन कोई सुन ही न रहा था। आखिरकार एक ने सूना और हम भी ब्लौग पर आ ही गए। इस बीच सचिन को देखते थे कि लगातार अपने ब्लौग को 'रिच-ऋचा' रहा था, ऐसे में भला हमारी मति पर प्रभाव पड़ना ही था कि हम क्योंकर पीछे रहें। अब जबकि हमारा भी ब्लौग बन ही गया है हम भी कचरा लेखन में सब से टक्कर ले सकेंगे।
तो बहनो और भाईयों, होशियार हो जाओ! हम आ रहे हैं तुम्हारे कंप्यूटर के की-बोर्ड तक, ताकी तुम्हे हिसाब बराबर करने का अफ़सोस न रहे। जितना कमेंट हमने तुम्हारे ब्लौग पर किया है, यदि उतना ही पूरा न हुआ तो समझना कुट्टी, हाँ!

2 टिप्‍पणियां:

सचिन श्रीवास्तव ने कहा…

सुवागत है ललनजी बहुते सुवागत है अब आ गये हैं तॊ बतरसी हॊतई रहेगी

Anna ने कहा…

Are mere bhai ye Sachinji ko aapka ye naam kaise pata chala.Waise Kanphusaki kafi achcha naam rakha hai blog ka. Lagata hai kafi samjhadar ho gaye aap.Eak Bujhanuk babu hai or dosara aap "samajhadar babau".