कमोबेश सभी को ब्लौगीयाते देख हम इस परेशानी मे रहे कि हम क्यों नहीं ब्लौग बना पा रहे हैं। कईयों को कहा कि भाई हमारा ब्लौग बनाने में हमारी मदद करो। लेकिन कोई सुन ही न रहा था। आखिरकार एक ने सूना और हम भी ब्लौग पर आ ही गए। इस बीच सचिन को देखते थे कि लगातार अपने ब्लौग को 'रिच-ऋचा' रहा था, ऐसे में भला हमारी मति पर प्रभाव पड़ना ही था कि हम क्योंकर पीछे रहें। अब जबकि हमारा भी ब्लौग बन ही गया है हम भी कचरा लेखन में सब से टक्कर ले सकेंगे।
तो बहनो और भाईयों, होशियार हो जाओ! हम आ रहे हैं तुम्हारे कंप्यूटर के की-बोर्ड तक, ताकी तुम्हे हिसाब बराबर करने का अफ़सोस न रहे। जितना कमेंट हमने तुम्हारे ब्लौग पर किया है, यदि उतना ही पूरा न हुआ तो समझना कुट्टी, हाँ!
सोमवार, 18 जून 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
प्रयागराज के आसमान से ऐसी दिखती है गंगा. (साभार-https://prayagraj.nic.in/) यह साल 1988 की बात होगी, जब हम तीन भाई अपनी दादी की आकांक्षा पर ब...
-
खुश होने के कई कारणों के पीछे, होते हैं कई अंतराल, बीच की कुछ घटनाएं उन्हें जोड़ती हैं, एक नया अंतराल जनमाने के लिए. कुछ ऐसा भी घटित होता है...
-
पराठे तो खाए होंगे आपने. साथ में भले ही हलवा न खाया हो. खैर आजकल हलवा-पराठा की चासनी में डूबा हुआ है. भई, मानना पड़ेगा कि कुछ तो खासियत होती...
2 टिप्पणियां:
सुवागत है ललनजी बहुते सुवागत है अब आ गये हैं तॊ बतरसी हॊतई रहेगी
Are mere bhai ye Sachinji ko aapka ye naam kaise pata chala.Waise Kanphusaki kafi achcha naam rakha hai blog ka. Lagata hai kafi samjhadar ho gaye aap.Eak Bujhanuk babu hai or dosara aap "samajhadar babau".
एक टिप्पणी भेजें