सोमवार, 17 सितंबर 2007

हे राम !



कितनी स्थितियों में आपके पास व्यक्त करने के लिए ये पूणॆ या अपूणॆ वाक्य होता है। देखते हैं...

१. जब आप या आपका चप्पल गूं से सन जाए
२. आप अपने किसी संगी के किसी कृत्य से अफसोस करने की स्थिति में पहुंच जाएं
३. आपके आसपास की परिस्थितियां आपके वश में न हों
४. जब आप कुछ भी करने की स्थिति में न रहें
५. निजॆन स्थान पर जब आप अकेले हों
६. आश्चयॆ को व्यक्त करने की स्थिति में
७. आप या आपका कोई संबंधी मर रहा हो (जैसे गांधीजी के साथ हुआ)
८. किसी घटना से दुखी होकर
९. यात्रा के दौरान आपकी बस या ट्रेन छूट जाए और आगे साधन मिलने का कोई जुगाड़ न दिख रहा हो
१०. ...ताजा संदभॆ में देखें तो केंद्र सरकार और विपक्षी व वामदलों की शोशेबाजी पर भी इस वाक्य का व्यवहार समुचित है

ये तो कुछ बानगी भर है। इससे इतर भी कई स्थितियां ऐसीं हो सकती हैं जहां राम का नाम बरबस लोगों के कंठ से बाहर आ जाता है. मैथिली के प्रसिद्ध विद्वान हरिमोहन झा कह गए हैं कि राम ने अपने जीवन में कई ऐसे कृत्य किए हैं जिसके कारण उनका नाम गूं से छू जाने पर लोग ले ही लेते हैं. अब झाजी की यदि मानें तो इतने पर भी यदि अब तक राम भगवान के रूप में बचे हुए हैं तो ये उनकी नहीं, हमारी आस्था और भाजपा, विहिप जैसे संगठनों की बदौलत ही है, ऐसा हम मान सकते हैं. फिर यदि केंद्र या कोई भी सरकार राम से जुड़ा कोई भी मसला ऐसे तरीके से उठाएगी जैसे कि उसने उठाया, तो हंगामा लाजिमी ही है. मुश्किल उन वामपंथियों को ज्यादा होनी चाहिए थी क्योंकि उनके माक्सॆ अपने पोथे में राम जैसे किसी तत्व का उल्लेख ही नहीं कर गए हैं. लेकिन उनके बंगाल से सटे बिहार में राम की लुगाई सीता की जन्म स्थली है. उससे सटे नेपाल के जनकपुर को तथाकथित ही सही राम का ससुराल माना जाता है. (यहां ये गौरतलब है कि बिहार के दो जिले (मधुबनी और बेगूसराय) कभी वामपंथियों के लिए लेनिनग्राद और पीट्सबगॆ कहे जाते थे.) तो शायद बिहार के कारण ही वामपंथियों ने बच-बचके राम सेतु पर केंद्र का विरोध किया.
भाजपा अपने पुराने प्लेटफामॆ पर आ गई। उसके लिए स्थिति ज्यादा सही है. वो राम को बाकी दलों के मुकाबले बेहतर जानती-समझती है. उसके कई कारिंदे डायरेक्ट राम मंदिर का संतत्व छोड़ के आए हैं. राम की किसी भी चीज पर उनका पहला अधिकार बनता है. फिर वो सेतु. राम की जिंदगी का टरनिंग प्वाइंट तो वही था. इस पर किसी को कुछ करने का अधिकार है तो वह भाजपा को है, संप्रग को नहीं. इसलिए भाजपा ने ठान ही रखी है कि राम के नाम का गूं अगर किसी के चप्पल में लगेगा तो वह भाजपा का होगा, किसी और का नहीं. बाकियों के लिए क्या लिखें वो तो अपना धमॆ निभा रहे है इंडियन एक्सप्रेस की तरह. केंद्र में कोई भी हो, किसी 'एंगिल' से विरोध करना ही है.
अब आप खुद ही सोच सकते हैं कि ऊपर जो मैंने कुछ परिस्थितियां गिनाईं उनमें से कौन-कौन सी स्थिति इन दलों के लिए फबेगी..................

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